वोह परिंदे ....

आसमान से अक्सर जुड जानें का सोचा  करती ....
उन परिंदों से अक्सर मिल जाने का सोचा करती ...
यूँ तोह मंजिल नाह समझ आई ...
फिर भी उन वादियों में खो जाना का सोचा करती ....

उपासना ...

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